बलूचिस्तान फिर दहला: खारान, खुजदार और मस्तुंग में एक साथ हमले, सुरक्षाबलों पर भारी पड़ा बलूच विद्रोह

क्वेटा:
बलूचिस्तान एक बार फिर खून-खराबे का गवाह बना। शुक्रवार की सुबह जैसे ही सूरज ने करवट ली, खारान, खुजदार और मस्तुंग जैसे संवेदनशील इलाकों में हिंसा की आग भड़क उठी। हथियारों से लैस बलूच विद्रोहियों ने पाकिस्तानी पुलिस और सुरक्षाबलों पर एक साथ तीन मोर्चों पर हमला बोल दिया। इन हमलों में कई सुरक्षाकर्मियों की जानें चली गईं, दर्जनों घायल हैं और कई हथियार विद्रोही अपने साथ ले गए।
शाहवानी चौक पर पुलिस पर धावा
सबसे पहले खारान जिले के व्यस्त शाहवानी चौक पर हमला हुआ, जहां सुबह-सुबह गश्त कर रही पुलिस टीम पर अज्ञात हमलावरों ने ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं। इस हमले में एक से अधिक पुलिसकर्मी मौके पर ही ढेर हो गए, जबकि कुछ को घायल अवस्था में अस्पताल ले जाया गया। चश्मदीदों के अनुसार, हमलावरों ने बड़ी बेरहमी से पुलिसकर्मियों के हथियार छीन लिए और बाइक पर सवार होकर फरार हो गए। आम लोगों में दहशत फैल गई, दुकानें बंद हो गईं और सड़कें सुनसान हो गईं।
खुजदार में शांति बल बना निशाना
दूसरा बड़ा हमला खुजदार जिले के नाल इलाके में हुआ, जहां बलूच विद्रोहियों ने सरकार समर्थक शांति बल पर घात लगाकर हमला किया। हमले में मारे गए जवानों के हथियार भी लूट लिए गए। ये बल ग्रामीण इलाकों में सरकार और सुरक्षाबलों की मदद करते हैं, इसलिए अक्सर विद्रोहियों के निशाने पर रहते हैं। फिलहाल मृतकों की सही संख्या की पुष्टि नहीं हो पाई है, लेकिन स्थानीय सूत्रों के मुताबिक हालात काफी गंभीर हैं।
मस्तुंग में सैन्य पोस्ट पर 20 मिनट तक बरसीं गोलियां
सबसे भयावह हमला मस्तुंग के कड़कूचा इलाके में हुआ, जहां एक सैन्य पोस्ट पर करीब 20 मिनट तक लगातार भारी गोलीबारी की गई। स्थानीय निवासियों ने बताया कि गोलियों की आवाजें दूर-दूर तक गूंजती रहीं और लोग अपने घरों में दुबक गए। हमलावर पूरी तैयारी के साथ आए थे—भारी हथियारों से लैस और पूरी रणनीति के तहत हमला किया गया। इस हमले में पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान हुआ है।
फिर सवालों के घेरे में पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था
तीनों हमले न सिर्फ सुनियोजित थे, बल्कि समय और स्थान के हिसाब से एक जैसी रणनीति पर आधारित थे—जिससे साफ है कि बलूच विद्रोही अब पहले से कहीं ज़्यादा संगठित हो चुके हैं। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर क्यों हर बार पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां इन हमलों को रोकने में विफल रहती हैं? और क्या बलूचिस्तान की जनता हमेशा इसी तरह डर और अस्थिरता में जीती रहेगी?