कहाँ गए ये पौधे ? जिनको ट्री गार्ड मिला था, कहाँ हैं ये तालाब… ! जिन पर लाखो खर्च किया गया था
इन कागजी हरियाली से गर्मी कम नहीं होगी साहब ? गर्मी बहुत है
विनीत प्रताप श्रीवास्तव -गोंडा : लाखों रूपए खर्च कराके भी पौधे भी अपनी छटा नहीं बिखेर सके ये भ्रष्टाचार की भेट चढ़ कर कागजी हरियाली जरुर दे रहे हैं, लेकिन इनसे गर्मी और छांव दोनों नहीं मिलने वाली है साहब ?
ये स्थिति समूचे जनपद के लगभग सभी ग्राम पंचायतों की है कि हर साल लांखो -लाख पौधे लगाये जाते हैं लेकिन ढाक के तीन पात ! कहाँ हैं ये तालाब , कहाँ है ये पौधे ,कहाँ गया ट्री गार्ड, जहाँ की देखरेख करनी थी इनको हरा-भरा रखना था , न तालाब में पानी है , न पौधे हैं , न ही ट्री गार्ड है , अगर कुछ है तो पौधारोपण के नाम पर सिर्फ और सिर्फ भुगतान स्लिप ! भला जनता का हो या न हो लेकिन भला उन लोगों का जरुर हुआ जिन अधिकरियों कर्मचारियों या पदासीन लोग जिनकी जिम्मेदारी और जबाबदेही थी लेकिन उनका क्या फिर से बारिश फिर से पौधरोपण फिर से पैसा निकासी मतलब वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है ?
बताते चलें कि हर साल बारिश के दिनों में सरकार की ओर से पर्यावरण को अनुकूल बनाने के लिए एक सार्थक जनहित योजनाबद्ध तरीके से प्रत्येक ग्राम पंचायतवार पौधारोपण का कार्यक्रम चलाया जाता है और तालाब तथा सार्वजानिक स्थानों पर पौधे लगाने का निर्देश दिया जाता है, साथ ही महत्वपूर्ण स्थानों पर पौधे के साथ ट्री गार्ड की भी व्यवस्था सरकार ने बनायीं जिससे पौधे सुरक्षित रहें और उन पौधों को हरा-भरा रखने के लिए मनरेगा तहत बजट भी बनाया | लेकिन इन पौधों के नाम पर पैसा निकासी तो होती है लेकिन जिम्मेदार अधिकरियों की नजर इन पौधों पर नहीं पडती कि आखिर पौधे गए कहाँ | लाखों रुपये के पौधे कहाँ गए , कहा गया वह ट्री गार्ड , कहा है वह तालाब जहाँ पौधारोपण भुगतान स्लिप में दिखाया गया था | जिसके नाम पर मनरेगा से आईडी जारी की गयी थी
स्वच्छ गोंडा, हरा गोंडा सुन्दर गोंडा, हमारा गोंडा …. कुल मिलकर यही कहना है कि भला हो प्रधान का, और बदनामी हो सरकार की….? शेष अगले अंक में