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सेबी प्रमुख पर नई हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद राहुल गांधी ने शेयर बाजार के जोखिम की चेतावनी दी !

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने रविवार को अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए नवीनतम आरोपों के बाद भारत के शेयर बाजार की अखंडता के बारे में कड़ी चेतावनी जारी की।

एक वीडियो बयान में गांधी ने भारत के बाजार नियामक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के प्रमुख से जुड़े संभावित हितों के टकराव के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की।

गांधी ने कहा, “विपक्ष के नेता के रूप में यह मेरा कर्तव्य है कि मैं आपके ध्यान में लाऊं कि भारतीय शेयर बाजार में काफी जोखिम है, क्योंकि शेयर बाजार को नियंत्रित करने वाली संस्थाएं समझौतावादी हैं।” उन्होंने हिंडनबर्ग रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच पर आरोप लगाया गया था कि अदानी समूह द्वारा कथित रूप से अवैध शेयर स्वामित्व और मूल्य हेरफेर के लिए इस्तेमाल किए गए ऑफशोर फंड में से एक में उनकी हिस्सेदारी थी।

शनिवार को जारी हिंडनबर्ग रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बुच और उनके पति धवल बुच ने बरमूडा स्थित ग्लोबल ऑपर्च्युनिटीज फंड के एक सब-फंड में निवेश किया था। रिपोर्ट के अनुसार, यह फंड अडानी समूह की स्टॉक ट्रेडिंग गतिविधियों से जुड़ा हुआ था।

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि धवल बुच 2017 में खाते के एकमात्र संचालक बन गए थे, यानी माधबी पुरी बुच के सेबी में शामिल होने से ठीक पहले।

गांधी ने सेबी के अध्यक्ष के रूप में बुच की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा, “यह एक विस्फोटक आरोप है, क्योंकि इसमें आरोप लगाया गया है कि अंपायर स्वयं भी समझौता कर चुकी हैं।”

गांधी ने कहा, ‘‘सेबी की अध्यक्ष माधवी पुरी बुच ने अभी तक इस्तीफा क्यों नहीं दिया है?’’

उन्होंने तत्काल कार्रवाई का आह्वान करते हुए पूछा, “यदि निवेशक अपनी मेहनत की कमाई खो देते हैं, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा – प्रधानमंत्री मोदी, सेबी अध्यक्ष या गौतम अडानी?”

गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय से अडानी समूह के खिलाफ मामले पर फिर से विचार करने का आग्रह किया तथा सुझाव दिया कि नए आरोपों के लिए आगे की जांच की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा, “नए और बहुत गंभीर आरोप सामने आए हैं। क्या सर्वोच्च न्यायालय इस मामले को एक बार फिर स्वतः संज्ञान में लेगा? अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि प्रधानमंत्री मोदी इस मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) द्वारा किए जाने के खिलाफ क्यों हैं।”

 

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