पटना हाईकोर्ट ने बिहार में 65% आरक्षण को बताया असंवैधानिक
बिहार में जाति आधारित जनगणना के फैसले पर राज्य की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने निर्णय लिया था। जनगणना का काम बीच में बनी महागठबंधन सरकार के दौरान पूरा हुआ। महागठबंधन सरकार के नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे। महागठबंधन सरकार ने जातीय जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाकर राज्य में आरक्षण का प्रतिशत 65 तक बढ़ा दिया था। 2024 में लोकसभा चुनाव के समय, महगठबंधन के मुख्य दल राष्ट्रीय जनता दल ने इस आरक्षण का श्रेय भी ग्रहण किया। किसी भी दल ने आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने को गलत नहीं बताया था। परंतु वर्तमान में, पटना हाई कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने के फैसले को असंवैधानिक ठहराया है।
कोर्ट के फैसले के बाद नीतीश सरकार को लगा बड़ा झटका
नीतीश सरकार को यह कोर्ट का निर्णय बड़ा चौंकाने वाला माना जा रहा है। गुरुवार को सुनवाई की दौरान पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के अनुसूचित जाति, जनजाति, अत्यंत पिछड़े और अन्य पिछड़े वर्ग को 65 आरक्षण देने वाले कानून को रद्द कर दिया है।
भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है
वास्तव में, पटना हाईकोर्ट में गौरव कुमार और अन्य लोगों ने 65 प्रतिशत आरक्षण कानून के खिलाफ एक याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी। न कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का प्रावधान।बिहार सरकार द्वारा पारित किया गया 2023 का संशोधित अधिनियम भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इसमें सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समान अधिकार का उल्लंघन करता है, वहीं भेद भाव से संबंधित मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है। चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ ने इस पर लंबी सुनवाई की। इसके बाद 11 मार्च को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज कोर्ट ने राज्य सरकार के निर्णय को रद्द करने का फैसला सुनाया है, जिसमें 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने की योजना थी।