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 जीते 12 स्वर्ण पदक, कोच की सलाह ने प्रियंका के खेल का बदला रंग

चार सौ और आठ सौ मीटर दौड़ में आठ पदक जीत चुकी हूं, लेकिन अब तक राष्ट्रीय प्रतियोगिता में एक भी स्वर्ण नही मिला। साई कोच की सलाह पर हमने खेल में बदलाव किया है। अब मैं सौ मीटर और चार सौ मीटर बाधा दौड़ में हिस्सा ले रही हूं। इस बार राज्य स्तरीय प्रतियाेगिता में दो स्वर्ण भी मिला है और राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए क्वालिफाई कर ली हूं। यह बातें कछवां रोड की रहने वाले प्रियंका सरोज ने बातचीत के दौरान कहीं।

प्रियंका ने बताया कि वह 2017 से एथलेटिक्स के ट्रैक पर हैं। नौवीं कक्षा में पहली बार पदक जीता तो स्कूल ने साल भर की फीस माफ कर दी। 12वीं तक पदक जीतती रहीं और वह सिलसिला आज भी जारी है। जब तक खेली, स्कूल में ओवरऑल चैंपियन बनी रही। बताया कि माता-पिता किसान हैं। घर के खर्च के लिए खेतों में काम करना होता है।

घर की स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से कोच की सलाह पर साई के लिए ट्रायल दिया और चयनित हुई। फिलहाल प्रियंका बीएचयू के सामाजिक विज्ञान संकाय में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। बताया कि डाइट भी ठीक से नहीं मिल पाती थी। हॉस्टल में आने के बाद सब कुछ बदल गया। 2019-20 से लगातार दो अलग-अलग इवेंट में पदक जीती हूं।

नौवीं से बारहवीं तक का शुल्क हुआ माफ

नौवीं में स्कूली खेल बच्छांव में आयोजित हुआ था। इसमें प्रियंका ने 400 मीटर दौड़ में प्रथम स्थान हासिल किया। मेडल लेकर घर लौटी तो पिता और माता ने हौसला बढ़ाया। जब अपने स्कूल श्री भवानी प्रसाद इंटरमीडिएट कॉलेज डंगहरियां पहुंची तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। प्रधानाचार्य ने पूरे वर्ष का शुल्क माफ कर दिया। इसके बाद लगातार खेलों में पदक लाती रही और बारहवीं विज्ञान वर्ग से पास की। इस दौरान बतौर शुल्क मेडल देती रही।
दौड़ को छोड़ बाधा दौड़ में कर रही अभ्यास
प्रियंका सरोज ने बताया कि वह प्रतिदिन सुबह साढ़े पांच से आठ बजे तक और शाम पांच से साढ़े सात बजे तक बीएचयू एम्फीथिएटर एथलेटिक्स मैदान पर साई सेंटर के कोच संजीव श्रीवास्तव की देखरेख में अभ्यास करती हैं। गेम बदलने का फैसला बेहद कठिन था।

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