कांवड़ यात्रा विवाद पर योग गुरु बोले, “रामदेव के पास कोई मुद्दा नहीं है, तो रहमान के पास क्यों है?”
अगर रामदेव को कोई परेशानी नहीं है, तो फिर रहमान को क्या परेशानी है? योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार के उस निर्देश पर चल रही बहस के बीच योग गुरु रामदेव ने पूछा, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाद्य पदार्थों की दुकानों पर उनके मालिकों के नाम प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया है। रामदेव की यह टिप्पणी विभिन्न विपक्षी दलों और नेताओं की आलोचना के बीच आई है, जिनका तर्क है कि यह निर्देश धर्म के आधार पर भेदभाव करता है।
रामदेव ने कहा, “अगर रामदेव को अपनी पहचान बताने में कोई दिक्कत नहीं है, तो रहमान को अपनी पहचान बताने में दिक्कत क्यों होनी चाहिए? हर किसी को अपने नाम पर गर्व होना चाहिए। नाम छिपाने की कोई जरूरत नहीं है, सिर्फ काम में शुद्धता की जरूरत है। अगर हमारा काम शुद्ध है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम हिंदू हैं, मुस्लिम हैं या किसी अन्य समुदाय से हैं।”
विवाद तब शुरू हुआ जब उत्तर प्रदेश सरकार ने एक आदेश जारी किया जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित खाद्य प्रतिष्ठानों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने की आवश्यकता थी। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किए गए इस कदम को कई लोगों ने मुस्लिम स्वामित्व वाले व्यवसायों की पहचान करने और उन्हें संभावित रूप से लक्षित करने का एक छिपा हुआ प्रयास माना है।
विपक्ष की आलोचना
विपक्ष ने इस निर्देश की कड़ी निंदा की है और इसे गहरे पूर्वाग्रह का उदाहरण बताया है। सूत्रों के अनुसार, समाजवादी पार्टी ने आज सर्वदलीय बैठक में इस मुद्दे को उठाया और कहा कि यह कदम “पूरी तरह से गलत” है।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने दावा किया, “उत्तर प्रदेश के कांवड़ मार्गों पर भय: यह भारतीय मुसलमानों के प्रति नफरत की वास्तविकता है। इस गहरी नफरत का श्रेय राजनीतिक दलों, हिंदुत्व के नेताओं और तथाकथित दिखावटी धर्मनिरपेक्ष दलों को जाता है।”
राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने भी निर्देश की आलोचना की।
सिब्बल ने सोशल मीडिया पर लिखा, “कांवड़ यात्रा मार्ग पर उत्तर प्रदेश सरकार ने सड़क किनारे ठेले समेत भोजनालयों को मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का निर्देश दिया है! क्या यह ‘विकसित भारत’ का मार्ग है? विभाजनकारी एजेंडे केवल देश को विभाजित करेंगे!”
सरकार की प्रतिक्रिया
विरोध के बावजूद, सत्तारूढ़ पार्टी और उसके समर्थकों ने निर्देश का बचाव किया है। मुजफ्फरनगर पुलिस ने स्पष्ट किया कि आदेश के पीछे का उद्देश्य धार्मिक भेदभाव पैदा करना नहीं था। पुलिस ने कहा कि भोजनालयों से अनुरोध किया गया है कि वे अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम “स्वेच्छा से प्रदर्शित करें”। पुलिस ने कहा कि इसका उद्देश्य किसी भी तरह का ‘धार्मिक भेदभाव’ पैदा करना नहीं है, बल्कि केवल भक्तों की सुविधा के लिए है।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा, “यह राज्य सरकार का मामला है, अगर राज्य सरकार कोई नया नियम लाती है तो सभी को उसका पालन करना होगा।”