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वसुधैव कुटुम्‍बकम के साक्षात उदाहरण हैं मोहन भागवत – पीएम मोदी

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत गुरुवार 11 सितंबर 2025 को अपना 75वां जन्‍मदिवस मना रहे हैं. मोहन भागवत साल 2009 में आरएसएस के प्रमुख का पद संभाला था. वे तब से आरएसएस के प्रमुख का पद संभाल रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके जन्‍मदिन के मौके पर आलेख के माध्‍यम से उन्‍हें याद किया और बधाई दी है.

आज 11 सितंबर है. यह दिन दो स्मृतियों की याद दिलाता है. पहली 1893 की है, जब स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था. ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’ शब्दों के साथ उन्होंने वहां उपस्थित हजारों लोगों का दिल जीत लिया था. उन्होंने भारत की शाश्वत आध्यात्मिक विरासत और उसकी सार्वभौमिक भाईचारे की भावना को विश्व मंच पर प्रस्तुत किया. दूसरी स्मृति तब की है जब इसी सिद्धांत पर 9/11 को आतंकवाद और कट्टरपंथ के खतरे ने हमला किया

इस दिन की एक और विशेषता भी है. आज उस महान व्यक्तित्व का जन्मदिन है, जिसने वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत से प्रेरित होकर अपना संपूर्ण जीवन सामाजिक परिवर्तन और सौहार्द व भाईचारे की भावना को सशक्त बनाने के लिए समर्पित कर दिया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लाखों लोगों के लिए वे परम पूज्य सरसंघचालक के रूप में आदरपूर्वक संबोधित किए जाते हैं. जी हां, मैं श्री मोहन भागवत जी की ही बात कर रहा हूं, जिनका 75वां जन्मदिन उसी वर्ष पड़ रहा है जब संघ अपनी शताब्दी मना रहा है. मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं और उनके दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन की प्रार्थना करता हूं.

मोहन जी के परिवार से मेरा बहुत गहरा संबंध रहा है. मुझे उनके पिता स्‍वर्गीय मधुकरराव भागवत जी के साथ निकटता से काम करने का सौभाग्य मिला. मैंने अपनी पुस्तक ज्योतिपुंज में उनके बारे में विस्तार से लिखा है. विधि-जगत से जुड़े होने के साथ-साथ उन्होंने राष्ट्र-निर्माण को अपना ध्येय बना लिया था. गुजरात में संघ को सुदृढ़ बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही. राष्ट्र-निर्माण के प्रति उनका ऐसा जुनून था कि उन्होंने अपने पुत्र मोहनराव को भारत के पुनरुत्थान के लिए कार्य करने की प्रेरणा दी. मानो परसमणि मधुकरराव ने मोहनराव के रूप में एक और परसमणि गढ़ दी हो.

मोहन जी 1970 के दशक के मध्य में प्रचारक बने. ‘प्रचारक’ शब्द सुनकर कोई यह मान सकता है कि यह केवल प्रचार करने वाला व्यक्ति है, लेकिन संघ से जुड़े लोग जानते हैं कि प्रचारक परंपरा संगठन के कार्य का मूल है. पिछले 100 वर्षों में देशभक्ति की भावना से प्रेरित हजारों युवाओं ने घर-परिवार छोड़कर अपना जीवन भारत प्रथम के ध्येय को पूरा करने के लिए समर्पित किया है.

RSS में उनके शुरुआती वर्ष भारतीय इतिहास के एक अंधकारमय दौर से जुड़े थे. यह वह समय था जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने आपातकाल थोप दिया था. लोकतांत्रिक मूल्यों को मानने वाले और भारत की समृद्धि चाहते हर व्यक्ति के लिए आपातकाल विरोधी आंदोलन को मजबूती देना स्वाभाविक था. यही कार्य मोहन जी और असंख्य स्वयंसेवकों ने किया. उन्होंने महाराष्ट्र के ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों, खासकर विदर्भ में व्यापक काम किया. इससे उन्हें गरीबों और वंचितों की चुनौतियों को गहराई से समझने का अवसर मिला.

वर्षों में भागवत जी ने संघ में विभिन्न जिम्मेदारियां निभाईं. हर दायित्व उन्होंने कुशलता से पूरा किया. 1990 के दशक में अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख के रूप में उनके कार्यकाल को अनेक स्वयंसेवक आज भी स्नेहपूर्वक याद करते हैं. उस समय उन्होंने बिहार के गांवों में काफी समय बिताया और जमीनी मुद्दों से गहरा जुड़ाव बनाया. 2000 में वे सरकार्यवाह बने और यहां भी उन्होंने अपनी अनूठी कार्यशैली से जटिल परिस्थितियों को सहजता से संभाला. 2009 में वे सरसंघचालक बने और आज भी पूरी ऊर्जा के साथ कार्यरत हैं.

सरसंघचालक होना मात्र एक संगठनात्मक जिम्मेदारी नहीं है. यह भूमिका असाधारण व्यक्तित्वों द्वारा त्याग, स्पष्ट उद्देश्य और अडिग राष्ट्रनिष्ठा से परिभाषित होती है. मोहन जी ने इस दायित्व को पूरी निष्ठा से निभाने के साथ-साथ अपनी शक्ति, बौद्धिक गहराई और सहानुभूतिपूर्ण नेतृत्व से इसे और समृद्ध किया है.

अगर मैं मोहन जी की कार्यशैली के दो गुणों को चुनूं तो वे हैं – निरंतरता और अनुकूलन. उन्होंने जटिल परिस्थितियों में भी संगठन को इस प्रकार आगे बढ़ाया कि मूल विचारधारा से कोई समझौता न हो और समाज की बदलती आवश्यकताओं का भी समाधान हो सके. युवाओं के साथ उनका सहज जुड़ाव है, इसलिए उन्होंने सदैव अधिक युवाओं को संघ परिवार से जोड़ने पर ध्यान दिया. वे सार्वजनिक विमर्श और संवाद में भी भाग लेते हैं, जो आज की गतिशील और डिजिटल दुनिया में बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है.

विस्तृत रूप से देखा जाए तो भागवत जी का कार्यकाल संघ की सौ वर्षीय यात्रा का सबसे रूपांतरकारी दौर माना जाएगा. वर्दी में बदलाव से लेकर शिक्षा वर्गों में संशोधनों तक, कई महत्वपूर्ण परिवर्तन उनके नेतृत्व में हुए.

मुझे विशेष रूप से कोविड काल में मोहन जी के प्रयास याद आते हैं, जब पूरी मानवता अभूतपूर्व महामारी से जूझ रही थी. उस समय संघ की परंपरागत गतिविधियां कठिन हो गई थीं. मोहन जी ने तकनीक के अधिक उपयोग का सुझाव दिया. वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में उन्होंने वैश्विक दृष्टिकोण से जुड़े रहते हुए संस्थागत ढांचे विकसित किए. उस समय स्वयंसेवकों ने जरूरतमंदों तक पहुंचने का हर संभव प्रयास किया, साथ ही अपनी और दूसरों की सुरक्षा का भी ध्यान रखा. अनेक स्थानों पर चिकित्सा शिविर लगाए गए. हमने कई परिश्रमी स्वयंसेवकों को खोया, लेकिन मोहन जी की प्रेरणा ऐसी थी कि उनका संकल्प कभी नहीं डगमगाया.

इस वर्ष नागपुर में माधव नेत्र चिकित्सालय के उद्घाटन के समय मैंने कहा था कि संघ एक अक्षयवट है (एक शाश्वत वटवृक्ष) जो राष्ट्र की संस्कृति और सामूहिक चेतना को ऊर्जा देता है. इस अक्षयवट की जड़ें गहरी और मजबूत हैं क्योंकि वे मूल्यों में निहित हैं. जिन मूल्यों को पोषित और विकसित करने में भागवत जी ने अपना जीवन लगाया है, वह सचमुच प्रेरणादायक है.

मोहन जी का एक और प्रशंसनीय गुण है उनका मृदुभाषी स्वभाव. उनमें सुनने की असाधारण क्षमता है. यह गुण उन्हें गहरी दृष्टि देता है और उनके व्यक्तित्व व नेतृत्व में संवेदनशीलता और गरिमा जोड़ता है.

मैं यहां यह भी लिखना चाहूंगा कि उन्होंने हमेशा विभिन्न जन आंदोलनों में गहरी रुचि दिखाई है. स्वच्छ भारत मिशन से लेकर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ तक, वे सदैव पूरे संघ परिवार को इन अभियानों से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं. सामाजिक कल्याण को आगे बढ़ाने के लिए मोहन जी ने पंच परिवर्तन दिए हैं, जिनमें सामाजिक सद्भाव, पारिवारिक मूल्य, पर्यावरण जागरूकता, राष्ट्रीय आत्मबोध और नागरिक कर्तव्य शामिल हैं. ये देश के हर वर्ग को प्रेरित कर सकते हैं. हर स्वयंसेवक एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र का सपना देखता है. इस सपने को साकार करने के लिए स्पष्ट दृष्टि और निर्णायक कदम जरूरी हैं. मोहन जी में ये दोनों खूबियां भरपूर हैं.

भागवत जी सदैव ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के प्रबल समर्थक रहे हैं. वे भारत की विविधता और यहां की असंख्य संस्कृतियों व परंपराओं के उत्सव में गहरी आस्था रखते हैं.

अपने व्यस्त कार्यक्रम के बीच भी मोहन जी ने संगीत और गायन जैसी रुचियों को समय दिया है. बहुत कम लोग जानते हैं कि वे भारतीय वाद्ययंत्रों में भी निपुण हैं. पढ़ने का उनका शौक उनके अनेक भाषणों और संवादों में झलकता है.

कुछ ही दिनों में संघ 100 वर्ष का हो जाएगा. यह सुखद संयोग है कि इस वर्ष विजयादशमी, गांधी जयंती, लाल बहादुर शास्त्री जयंती और संघ शताब्दी उत्सव एक ही दिन पड़ रहे हैं. यह भारत और विश्वभर में संघ से जुड़े लाखों लोगों के लिए एक ऐतिहासिक पड़ाव होगा. और, इन दिनों संघ के पास एक अत्यंत बुद्धिमान और परिश्रमी सरसंघचालक मोहन जी हैं, जो संगठन का मार्गदर्शन कर रहे हैं.

अंत में मैं यही कहूंगा कि मोहन जी वसुधैव कुटुम्बकम के सजीव उदाहरण हैं. जब हम सीमाओं से ऊपर उठकर सबको अपना मानते हैं तो समाज में विश्वास, भाईचारा और समानता की भावना सुदृढ़ होती है. मैं एक बार फिर मोहन जी को मां भारती की सेवा में दीर्घ और स्वस्थ जीवन की शुभकामनाएं देता हूं.

saamyikhans

former crime reporter DAINIK JAGRAN 2001 and Special Correspondent SWATANTRA BHARAT Gorakhpur. Chief Editor SAAMYIK HANS Hindi News Paper/news portal/

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