‘जीत से कम कुछ भी मंजूर नहीं’, 34 साल से बाहुबली सांसद का राज, एक लाख से अधिक युवा हैं ताकत
किसी आफत से निपटने की कला ही बृजभूषण शरण सिंह को देवीपाटन मंडल का सियासी सूरमा बनाती है
उतार-चढ़ाव, विरोधियों से टकराव तथा किसी आफत से निपटने की कला ही बृजभूषण शरण सिंह को देवीपाटन मंडल का सियासी सूरमा बनाती है. 34 वर्ष की राजनीति में 29 साल भाजपा की डोर पकड़ कर चलने वाले बृजभूषण शरण सिंह के इस लोकसभा चुनाव में टिकट कटने या मिलने के कयास लगाए जा रहे हैं. कोई उनको विकास का दुश्मन कहता है तो कोई उन्हें युवाओं का रहनुमा बताता है. बृजभूषण शरण सिंह की ताकत का फलसफा कहां से है और कैसे युवाओं के नेतृत्व कर्ता बने आइए हम आपको बताते हैं.
वर्ष 1991 में राम मंदिर आंदोलन के अगुवाकारों में बृजभूषण शरण सिंह का राजनीति में उभार हुआ. इसके पहले वह साकेत महाविद्यालय से पढ़ाई और छात्र राजनीति से निकल कर सीधे राम मंदिर आंदोलन से जुड़ गए. इसके बाद राम लहर में उन्होंने साल 1991 में गोंडा लोकसभा सीट जीत कर भाजपा की झोली में डाल दी
एक लाख से अधिक युवा हैं ताकत
कैसरगंज संसदीय सीट से सांसद भले ही टिकट के जाल में फंसे हैं लेकिन उनकी ताकत एक लाख से अधिक युवा हैं. बृजभूषण शरण सिंह ने नंदिनीनगर कालेज की स्थापना की. इसके बाद गोंडा की कमजोर शिक्षा को आधार बनाकर देवी पाटन मंडल में चार दर्जन से अधिक कॉलेज व स्कूलों की स्थापना की. इसमें पढ़ने वाले एक लाख से अधिक युवा तथा उनके परिजन सांसद बृजभूषण शरण सिंह की ताकत हैं. यही कारण है कि विरोध के बावजूद उनके हौसले को डिगाया नहीं जा सका
गंभीर आरोपों को पार कर बेदाग निकले
सांसद के पहले कार्यकाल में बृजभूषण शरण सिंह पर आंतकी गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगा और उन्हें टाडा के तहत जेल जाना पड़ा. भाजपा ने 1996 में इसी आरोप के चलते टिकट नहीं दिया. उनके स्थान पर उनकी पत्नी केतकी सिंह को लड़ाया और वह जीत गईं. बृजभूषण शरण सिंह टाडा के आरोप से बाइज्जत बरी हो गए और 1999 में फिर से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत कर संसद पहुंच गए. इसके बाद उनके जीतने का सिलसिला जारी रह
बलरामपुर सीट से प्रत्याशी
उधर, बृजभूषण सिंह को बलरामपुर सीट से प्रत्याशी बनाया गया. उन्होंने बाहुबली रिजवान जहीर को पटखनी देकर बलरामपुर सीट से भी विजय हासिल की. लेकिन, गोंडा की सीट भाजपा के हाथ से निकल गई और कीर्तिवर्धन सिंह सपा के टिकट पर संसद पहुंचे. इसी बीच उनके ऊपर कई मामले न्यायालय में चल रहे थे जिसमें वह बरी हो गए. 2009 में सीटों का परिदृश्य परिसीमन की वजह से बदल गया और भाजपा से थोड़ी अनबन होने पर बृजभूषण शरण सिंह ने सपा का दामन थाम लिया और कैसरगंज लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और जीत गए.
लेकिन, गोंडा सीट पर कमजोर प्रत्याशी होने के कारण 2009 में भाजपा तीसरे पायदान पर पहुंच गई. यहां से कांग्रेस के नेता बेनी प्रसाद वर्मा चुनाव जीते और बसपा से कीर्तिवर्धन सिंह दूसरे स्थान पर रहे. लेकिन 2014 में वह पुन: भाजपा में वापस लौटे और 2014 तथा 2019 में कैसरगंज सीट जीत कर भाजपा की झोली में डाल दी. 2024 के चुनाव के पहले उन पर महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न सहित कई आरोप लगे जिसमें अभी तक जांच एजेंसियों ने बृजभूषण शरण सिंह को आरोपी साबित नहीं किया है फिलहाल पार्टी हाईकमान क्या तय करती है सबको इसी का इंतजार है