तेज प्रताप यादव: लालू के ‘कन्हैया’ की राजनीति से बेदखली और टूटता परिवार का ताना-बाना

नई दिल्ली:
बिहार की राजनीति एक बार फिर लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के भीतर उठे बवंडर की गिरफ्त में है। इस बार मामला लालू-राबड़ी के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव का है — कभी जिन्हें ‘कन्हैया’ कहकर पुकारा जाता था, वही तेज प्रताप अब पार्टी से ही नहीं, अपने ही घर से भी बाहर कर दिए गए हैं। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने उन्हें छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है, और यह फैसला आया है एक सोशल मीडिया पोस्ट के बाद जिसमें उन्होंने अनुष्का यादव नाम की एक युवती से 12 साल पुराने रिश्ते का जिक्र किया। तेज प्रताप का दावा है कि उनका सोशल मीडिया अकाउंट हैक हुआ था और उन्होंने वह पोस्ट डिलीट भी कर दी। लेकिन इतनी सफाई भी उनके लिए काफी नहीं रही — पार्टी नेतृत्व और पिता लालू प्रसाद ने तुरंत उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।
ऐश्वर्या राय ने बताया ‘राजनीतिक नाटक’
तेज प्रताप की पूर्व पत्नी ऐश्वर्या राय ने पूरे घटनाक्रम को “सिर्फ एक राजनीतिक स्क्रिप्ट” करार दिया। उन्होंने तल्ख आरोप लगाते हुए कहा, “लालू और राबड़ी देवी ने न सिर्फ मेरी ज़िंदगी तबाह की, बल्कि तेज प्रताप को भी कभी समझने की कोशिश नहीं की। हमारी शादी तेज प्रताप पर ज़बरदस्ती थोप दी गई, जबकि उन्हें उनके पुराने रिश्ते के बारे में सब कुछ पता था।” ऐश्वर्या के मुताबिक तेज प्रताप को बाहर निकालने का फैसला भी एक राजनीतिक योजना का हिस्सा है — आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में तेजस्वी यादव को पार्टी का अकेला चेहरा दिखाने की तैयारी। “जब मुझे राबड़ी देवी ने घर से निकाला और मारपीट के आरोप लगे, तब इस परिवार ने कोई नैतिकता नहीं दिखाई,” उन्होंने कहा।
प्रेम पर प्रतिबंध, छोटे बेटे की छूट?
सवाल यह है कि जब लालू यादव ने अपने छोटे बेटे तेजस्वी की प्रेम-विवाह को बिना किसी विरोध के स्वीकार किया, तो तेज प्रताप की ‘लव स्टोरी’ को लेकर इतनी सख्ती क्यों? पार्टी के अंदर और बाहर यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या तेज प्रताप को शुरू से ही एक ‘दूसरी कतार’ का नेता समझा गया? लालू प्रसाद यादव के भतीजे नागेंद्र यादव ने तो इस पूरे मामले को ‘हनी ट्रैप’ तक करार दे दिया। उनका कहना है कि तेज प्रताप को योजनाबद्ध तरीके से बहकाया गया। ये आरोप जितने चौंकाने वाले हैं, उतने ही यह भी बताते हैं कि तेज प्रताप के आसपास का माहौल कितना अनिश्चित और अविश्वास से भरा हुआ है।
एक समय के ‘कन्हैया’ की गिरती छवि
2015 में तेज प्रताप ने पहली बार विधायक बनकर राजनीति में कदम रखा और महागठबंधन सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने। लेकिन जल्द ही उन्होंने ऐसे बयान और व्यवहार किए, जिससे उनकी छवि एक आवेगशील, अस्थिर और कभी-कभी रहस्यमय नेता की बनती गई। कृष्ण और शिव की भूमिका में अपनी तस्वीरें पोस्ट करना, पार्टी लाइन से अलग बयान देना और भाई तेजस्वी से राजनीतिक असहमति जताना — सब मिलाकर वे एक ‘गंभीर नेता’ की जगह ‘विवादित चेहरा’ बनते चले गए।
क्या वाकई परिवार ने किया उपेक्षित?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लालू-राबड़ी ने शुरू से ही तेजस्वी को अपना राजनीतिक वारिस मान लिया था। उन्हें मुख्यमंत्री चेहरा बनाना, मीडिया में लगातार दिखाना और संगठन की कमान सौंपना — यह सब तेज प्रताप के लिए संकेत थे कि उनकी भूमिका सीमित है। तेज प्रताप कई बार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि उनके माता-पिता ने उनकी भावनाओं को कभी गंभीरता से नहीं लिया। आज वे न पार्टी में हैं, न परिवार के साथ। एकाकी संघर्ष कर रहे हैं और किसी ज़माने के ‘राजनीतिक युवराज’ की तस्वीर अब एक असहाय और उपेक्षित बेटे की तरह उभर रही है।