MP में फर्जी चिकित्सक ने सात जानें लीं: 20 साल बाद, नकली डिग्री वाले तीन राज्यों में लाखों इलाज खुले

मध्य प्रदेश के दमोह में एक फर्जी डॉक्टर का मामला क्या है? कैसे एक व्यक्ति ने एक ब्रिटिश डॉक्टर की पहचान चुरा ली और उसके बदौलत दर्जन भर फर्जी सर्जरी की? इस फर्जी डॉक्टर ने क्या किया? अब तक, इससे जुड़े किन मामलों का खुलासा हुआ है? इसके अलावा, पूरे मामले में सरकार क्या कर रही है? जानते हैं..।
दमोह, मध्य प्रदेश में एक फर्जी चिकित्सक का मामला क्या है? कैसे एक व्यक्ति ने एक ब्रिटिश डॉक्टर की पहचान चुराकर दर्जन भर नकली सर्जरी की? इस नकली चिकित्सक ने क्या किया? अब तक किस मामले का खुलासा हुआ है? इसके अतिरिक्त, इस पूरे मामले में सरकार का क्या रुख है? जानता हूँ।
मध्य प्रदेश के दमोह में स्थित मिशन हॉस्पिटल में एक फर्जी डॉक्टर और उसके फर्जी इलाज का पूरा मामला है। कुछ महीने पहले यहां के कार्डियोलॉजी विभाग में एक डॉक्टर की नियुक्ति हुई थी। नाम था डॉक्टर जॉन कैम, दिल की बीमारियों का इलाज करने वाले लंदन के कार्डियोलॉजिस्ट।
अब पता चला है कि इस फर्जी डॉक्टर का नाम नरेंद्र विक्रमादित्य यादव है. उसने जॉन कैम की पहचान चुराकर खुद को लंदन में प्रशिक्षित डॉक्टर बताकर अस्पताल में नियुक्ति पाई। समाचारों के अनुसार, इस नकली डॉक्टर ने दिसंबर 2024 में अस्पताल में फर्जी दस्तावेजों से नियुक्ति पाई। इस दौरान, अस्पताल ने उसे ठीक से जांच किए बिना आठ लाख रुपये मासिक भुगतान देने का भी अनुबंध किया। इसके बाद मरीजों की जिंदगी अस्पताल में खतरा बन गई।
कमियों के बावजूद, एक प्लेसमेंट एजेंसी ने ‘फर्जी डॉक्टर जॉन कैम’ को अस्पताल में भर्ती किया। दिसंबर 2024 से फरवरी 2025 तक, इस डॉक्टर ने अस्पताल में मरीजों की एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी की सेवा की। यह भी दिलचस्प है कि यह अस्पताल आयुष्मान भारत कार्यक्रम के तहत गरीबों का इलाज करता था। यही कारण है कि फर्जी डॉक्टरों ने लंबे समय तक सार्वजनिक धन को बर्बाद किया, और अस्पताल प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लगी।
नरेंद्र विक्रमादित्य यादव के मोडस ऑपरेंडाई को लेकर उनके परिजनों ने खुलासा किया है। 9 जनवरी को दमोह के पुराना बाजार-2 निवासी 63 वर्षीय रहीसा बेगम के बेटे नबी कुरैशी ने बताया कि उनकी मां के सीने में दर्द था। 10 जनवरी को वह उन्हें जिला अस्पताल ले गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मिशन अस्पताल भेजा। उनका कहना था कि आयुष्मान का उपचार आवश्यक था, लेकिन मिशन अस्पताल से पच्चीस हजार रुपए की मांग की गई थी। जब बिना जांच के ही अस्पताल में पैसे मांगे गए, तो नबी ने मां को निजी अस्पताल में डॉ. डीएम संगतानी के यहां ले गए। फिर मिशन अस्पताल में भर्ती हुए। नबी ने इसलिए पांच हजार रुपए जमा किए।
रहीसा की जांच फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. N. John Campbell ने की। रिपोर्ट में एक नस 92 प्रतिशत ब्लॉक मिली, जबकि दूसरी नस 85 प्रतिशत ब्लॉक मिली। डॉक्टर कैम ने बताया कि सर्जरी होगी। 14 जनवरी को रहीसा को बुलाया गया था। 15 जनवरी दोपहर 12 बजे रहीसा को सर्जरी की गई, लेकिन साढ़े 12 बजे वह मर गई। डॉक्टर ने बताया कि सर्जरी के दौरान दूसरा हार्ट अटैक हुआ था। 15 दिन बाद परीक्षण रिपोर्ट दी गई। पहले सभी ने इसे आम मौत समझा। हालाँकि, अब भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।
दूसरी ओर, भरतला गांव में रहने वाले मंगल सिंह की मृत्यु हो गई है। जितेंद्र, उनके बेटे, ने चार फरवरी को अपने पिता को मिशन अस्पताल ले गया। यह एंजियोग्राफी था। रिपोर्ट ने कहा कि दिल का ऑपरेशन होना चाहिए था। लेकिन ऑपरेशन के बाद कुछ घंटों में मर गया। जितेंद्र ने बताया कि ऑपरेशन से पहले और बाद में किसी भी चिकित्सक से नहीं मिले। उसके पिता का ऑपरेशन फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट ने ही किया था।
कृष्णा ने बताया कि पूरी घटना के बाद उसे मिशन अस्पताल के डॉक्टर कैम पर शक हुआ। उसने बताया कि उसने जबलपुर और नरसिंहपुर से फर्जी डॉक्टर के खिलाफ दस्तावेज जुटाए और फिर बाल आयोग के अध्यक्ष दीपक तिवारी को मामले की शिकायत की। जब दीपक तिवारी ने कलेक्टर को मामला बताया, तो जांच शुरू हुई। लेकिन फर्जी डॉक्टर को इसकी भनक लग चुकी थी। ऐसे में वह फरवरी में ही छोड़कर दमोह चला गया।
फर्जी डॉक्टर से उसके काम के बारे में पुलिस ने जांच शुरू की। डॉ. कैम का बहरूपिया, हालांकि, 12 फरवरी को दमोह में अपने होटल से भाग गया, जब वह खुद को फंसता देखा। पुलिस ने जांच शुरू की तो फर्जी डॉक्टर की पहचान से कई बातें सामने आईं। नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उसका नाम था। इतना ही नहीं, पता चला कि उसने भागने से पहले एक पोर्टेबल इको मशीन चोरी कर ली थी, जिसका मूल्य पांच से सात लाख रुपये था। उस पर चोरी का भी मामला दर्ज हुआ था।
फर्जी डॉक्टर से उसके काम के बारे में पुलिस ने जांच शुरू की। डॉ. कैम का बहरूपिया, हालांकि, 12 फरवरी को दमोह में अपने होटल से भाग गया, जब वह खुद को फंसता देखा। पुलिस ने जांच शुरू की तो फर्जी डॉक्टर की पहचान से कई बातें सामने आईं। नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उसका नाम था। इतना ही नहीं, पता चला कि उसने भागने से पहले एक पोर्टेबल इको मशीन चोरी कर ली थी, जिसका मूल्य पांच से सात लाख रुपये था। उस पर चोरी का भी मामला दर्ज हुआ था।