मेरी एक गलती रही…’ 21 साल से राजनीति में हैं राहुल गांधी, अब जाकर समझ आया कहां चूक गए थे

21 साल से राजनीति में हैं. देश की सबसे पुरानी पार्टी के वारिस हैं. कई बार प्रधानमंत्री बनने के लिए “स्वाभाविक विकल्प” बताकर पेश किए गए. लेकिन अब, 2024 की हार के बाद राहुल गांधी कह रहे हैं “मुझसे एक बड़ी गलती हुई. मैंने OBC वर्ग को वो सुरक्षा, वो सम्मान नहीं दिया जो मिलना चाहिए था.” कांग्रेस के ‘भागीदारी न्याय सम्मेलन’ में उन्होंने खुले मंच से यह स्वीकारोक्ति की और यही वाक्य बन गया राजनीति की नई सुर्खी.
राजनीति में जब कोई नेता अपनी कमजोरी खुद कबूल करता है तो या तो वो बदलने को तैयार होता है या फिर छवि सुधारने की कोशिश कर रहा होता है. राहुल गांधी किस श्रेणी में हैं ये वक्त बताएगा. लेकिन इस भाषण में उन्होंने सिर्फ गलती नहीं मानी, बल्कि पीएम मोदी को “ओवरहाइप्ड शो” और तेलंगाना मॉडल को “राजनीतिक भूकंप” बताकर अपना ओबीसी रोडमैप भी पेश कर दिया. अब देखना है कि राहुल की यह ‘माफीनामा’ राजनीति को दिशा देगा या सिर्फ ध्यान बटोरने का एक नया हथकंडा साबित होगा.
मोदी जी बड़ी प्रॉब्लम नहीं हैं… आपने बस चढ़ा रखा है”
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि “मोदी जी कोई बड़ी समस्या नहीं हैं… आपने और मीडिया ने उन्हें सिर पर चढ़ा रखा है.” उन्होंने खुद दावा किया कि वो पीएम मोदी से दो बार मिल चुके हैं और उन्हें समझने के बाद ऐसा कह रहे हैं कि “ये सब बस एक शो है.”
राहुल की ‘स्वीकारोक्ति’
राहुल गांधी ने मंच से कहा:
ओबीसी, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यकों को मैंने वो संरक्षण नहीं दिया जो देना चाहिए था. ये मेरी गलती थी कांग्रेस की नहीं… मैं सुधार करूंगा.
उन्होंने कहा कि अब लक्ष्य सिर्फ जातिगत जनगणना नहीं, बल्कि इन वर्गों को आदर और निर्णय की शक्ति देना है. उन्होंने तेलंगाना मॉडल का जिक्र करते हुए बताया कि वहां अब सरकार के पास डेटा है, जिससे यह पता चल पाया है कि किस जाति के कितने लोग हैं और कहां हैं.
राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि सरकार ओबीसी, दलित और आदिवासी वर्ग को विकास पैकेजों के नाम पर गुमराह करती रही है लेकिन वास्तविक सम्मान और निर्णय की भागीदारी से वंचित रखा गया है.
“भाषा के झगड़े नहीं, अंग्रेजी भी जरूरी”
शिक्षा पर बोलते हुए राहुल गांधी ने कहा कि “क्षेत्रीय भाषा और हिंदी जरूरी हैं लेकिन अंग्रेज़ी भी उतनी ही जरूरी है.” उन्होंने ये बात भारत में शिक्षा के बहुभाषी मॉडल की वकालत करते हुए कही, जिससे वंचित वर्गों को ज़्यादा मौके मिल सकें.
क्या ये चुनावी मजबूरी या वाकई आत्मस्वीकृति?
राहुल गांधी का ये स्टैंड राजनीतिक हकीकत के आईने में कबूलनामे जैसा है. सवाल ये है कि क्या ये सिर्फ लोकसभा चुनाव की हार के बाद OBC कार्ड खेलने की कवायद है. या वाकई राहुल गांधी ने सवा दो दशक की राजनीति के बाद आत्मनिरीक्षण शुरू किया है?
कुछ सवाल जो उठते हैं:
क्या कांग्रेस अब वाकई OBC लीडरशिप को फ्रंट पर लाएगी?
जातिगत जनगणना का वादा… क्या राज्यों में कांग्रेस सरकार इसे लागू कर पाएगी?
50% आरक्षण की सीमा तोड़ना… क्या ये सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के लिए तैयार है?
क्या राहुल गांधी का ये भाषण 2029 की तैयारी है या 2025 के राज्य चुनावों की?