जम्मू-कश्मीर के कठुआ में तीन सप्ताह से चल रहे चरमपंथ विरोधी अभियान में अब तक क्या हुआ? क्या इतना समय लग रहा है?

13 दिनों से जम्मू-कश्मीर के कठुआ ज़िले में, भारत-पाकिस्तान सीमा से सिर्फ छह किलोमीटर की दूरी पर चरमपंथ विरोधी अभियान जारी है। अब तक, इस चरमपंथ विरोधी अभियान में जम्मू-कश्मीर पुलिस के चार जवानों की मौत हो गई है और पांच अन्य घायल हो गए हैं। पुलिस ने इस अभियान में दो चरमपंथियों को मार डाला है। जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजीपी और आईजी खुद इस अभियान की निगरानी कर रहे हैं, जो कठुआ के कई क्षेत्रों में चलाया जा रहा है।
ऑपरेशन के अगले दिन पुलिस महानिदेशक नलिन प्रभात की एक फोटो मीडिया में चली गई। उस चित्र में डीजीपी खुद एके-47 हाथ में लेकर सर्च अभियान में शामिल होते दिखाई देते हैं। तीस साल में पहली बार पुलिस डीजीपी ने खुद सर्च ऑपरेशन में भाग लिया। नाम न बताने पर अभियान में शामिल एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि कठुआ के कई इलाकों में चरमपंथियों के खिलाफ अभियान जारी है। उनका कहना था कि अभियान तब तक जारी रहेगा जब तक सभी चरमपंथियों को मारा नहीं जाएगा।
पुलिस अधिकारी ने कहा कि जिन स्थानों पर अभियान चलाया जा रहा है, पूरा क्षेत्र जंगलों से घिरा है, जिससे समय लग रहा है और कठिनाई हो रही है। नका भी कहता है कि ये पांच चरमपंथियों का एक समूह था, लेकिन एक संघर्ष के बाद वे अलग हो गए। उनका दावा था कि दो लोग मारे गए हैं और तीन लोगों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। उनका यह भी कहना था कि घने जंगलों और बड़ी चट्टानों की वजह से उन तक पहुंचने में मुश्किल हो रहा है और घने जंगलों के कारण ड्रोन्स से कोई खास मदद नहीं मिल सकती।
जब उनसे पूछा गया कि इस अभियान में अभी कितना समय लग सकता है, तो उन्होंने कहा कि अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व अधिकारी शिवपाल वैद ने फोन पर बीबीसी हिंदी को बताया कि इन चरमपंथियों को लंबे समय तक कठिन परिस्थितियों में कैसे बचे रहना है, उन्होंने प्रशिक्षण भी प्राप्त किया होगा। उनका कहना था, “ये बात सच है कि 11 दिनों से अभियान चल रहा है और अभी तक पूरी कामयाबी नहीं मिली है। वास्तव में, चरमपंथियों के खिलाफ अभियान चलाने वाले क्षेत्र में सुरक्षा बलों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा। ”
यह क्षेत्र आम नहीं है। ऊँचे पहाड़ों, घने जंगलों और गुफाओं से घिरा हुआ क्षेत्र है। मुख्य बात यह है कि चरमपंथियों को बचने के तरीके सिखाए गए हैं। उन्हें इन कठिन परिस्थितियों में ट्रेनिंग दी गई है। इसलिए वह इतने दिनों से बच रहे हैं। ” जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिदेशक शिवपाल वैद ने कहा कि जम्मू और कश्मीर में कुछ अलग-अलग क्षेत्र हैं। कश्मीर में मकानों के अंदर ये छुपे होते थे, उन्होंने कहा। मकान जल गया। ऐसा जम्मू में नहीं है। ये लोग यहाँ जंगलों में बसते हैं। जंगलों में अभियान चलाना कठिन है। ”
वहीं, इंटेलिजेंस के सवाल पर, वह कहते हैं, “इसे इंटेलिजेंस की कोताही या लापरवाही बताना सही नहीं है। हमारे पड़ोसी ने निर्णय लिया है कि उसे परेशान करना होगा. वह कभी-कभी सुरंग खोदकर इस पार आता है, कभी-कभी तार काटकर या कोई और उपाय करता है।
सेना ने कठुआ राज्य के सान्याल क्षेत्र में चरमपंथ विरोधी अभियान शुरू किया था। उन्हें इस इलाके में चरमपंथियों की उपस्थिति की सूचना मिली। अभियान के प्रारंभिक संघर्ष में एक छोटी बच्ची घायल हो गई। तीन दिनों के अभियान के दौरान सैनिकों को कुछ भी हासिल नहीं हुआ। चरमपंथी संघर्षस्थल से भाग गए। पुलिस ने कहा कि वे घटनास्थल से हथियार और गोला बारूद बरामद कर चुके हैं।
31 मार्च 2025 को इस दिन सुरक्षाबलों और चरमपंथियों के बीच एक बार फिर मुठभेड़ हुई. इसके बाद पूरे इलाके को घेर लिया गया और चरमपंथियों की तलाश तेज हो गई। जम्मू-कश्मीर पुलिस का विशेष दस्ता, भारतीय सेना और सीआरपीएफ की टुकड़ियां इस चरमपंथ विरोधी अभियान में शामिल हैं। पुलिस के अनुसार, 23 मार्च को एक स्थानीय महिला ने सान्याल गाँव में पांच चरमपंथियों को देखा था, जिसके बाद पुलिस को सूचना दी गई। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करके क्षेत्र को घेर लिया। घेराबंदी के बाद पुलिस और इलाके में छिपे चरमपंथियों के बीच झड़प हुई।
बीते चार सालों में जम्मू में कई चरमपंथी घटनाएं हुई हैं। इससे पहले जम्मू वर्षों तक शांत था। अक्सर कुछ हुआ। जम्मू में चरमपंथ की घटनाएं पहले पुंछ-राजौरी क्षेत्र तक सीमित थीं, लेकिन बाद में इसने जम्मू के अन्य क्षेत्रों में भी फैलना शुरू किया। जम्मू में चरमपंथ की घटनाओं में पिछले चार सालों में दर्जनों सैनिकों, आम नागरिकों और पुलिसकर्मियों की मौत हो गई है। अब जम्मू-कठुआ में भी चरमपंथ की घटनाएं हो रही हैं।
जम्मू क्षेत्र के अधिकांश क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सीमा या नियंत्रण रेखा के पास हैं। साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के अनुसार, 2021 की तुलना में 2024 में जम्मू-कश्मीर में घटनाएं घटी हैं। 2021 में जम्मू-कश्मीर में 153 घटनाएं हुईं, जबकि 2024 में 61 घटनाएं हुईं।