75 साल की उम्र में पद छोड़ देना चाहिए’, मोहन भागवत बोले- शॉल से सम्मानित किया जाए तो फिर दूसरों को आने देना चाहिए

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने 75 साल की उम्र के बाद पद छोड़ने का सुझाव दिया है. भागवत खुद 11 सितंबर को 75 साल के हो जाएंगे. बुधवार शाम को एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा कि जब आप 75 साल के हो जाते हैं, तो इसका मतलब है कि अब आपको रुक जाना चाहिए और दूसरों के लिए रास्ता बनाना चाहिए. उन्होंने दिवंगत RSS विचारक मोरोपंत पिंगले के शब्दों को याद करते हुए कहा, ‘मोरोपंत पिंगले ने एक बार कहा था कि अगर आपको 75 साल की उम्र के बाद शॉल से सम्मानित किया जाता है, तो इसका मतलब है कि अब आपको रुक जाना चाहिए, आप बूढ़े हो गए हैं और दूसरों को आने देना चाहिए.
मोहन भागवत ने संघ के विचारक स्वर्गीय मोरोपंत पिंगले को पूर्ण निस्वार्थता का मूर्तिमान स्वरूप बताया. वे नागपुर में पिंगले पर आधारित पुस्तक ‘Moropant Pinglay: The Architect of Hindu Resurgence’ के विमोचन समारोह में बोल रहे थे. इस अवसर पर भागवत ने पिंगले के राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण, सादगी और गंभीर विचारों को सरल शब्दों में समझाने की अद्भुत क्षमता की सराहना की. उन्होंने कहा, ‘मोरोपंत जो भी कार्य करते थे, वह दूरदृष्टि के साथ करते थे कि इससे राष्ट्र के निर्माण में क्या योगदान होगा. वे आत्मप्रशंसा से दूर रहते थे और हर प्रकार के सम्मान से बचने का प्रयास करते थे.’
आपातकाल पर भी बात
भागवत ने आपातकाल के बाद की राजनीतिक स्थितियों पर पिंगले की दूरदृष्टि का उल्लेख करते हुए कहा, ‘जब चुनाव की चर्चा हो रही थी, तो मोरोपंत ने कहा था कि यदि सभी विपक्षी दल एक साथ आएं तो लगभग 276 सीटें मिलेंगी. वास्तव में परिणाम भी यही रहा. जब नतीजे आए, तब मोरोपंत महाराष्ट्र के सज्जनगढ़ किले में थे – पूरी तरह प्रचार की चकाचौंध से दूर.’ संघ प्रमुख ने पिंगले की विनम्रता और सेंस ऑफ ह्यूमर को भी याद किया. उन्होंने बताया, ‘वे अपनी उपलब्धियों पर कभी चर्चा नहीं करते थे. यदि कोई तारीफ करता, तो मुस्कुरा कर विषय बदल देते थे. वे किसी भी सम्मान या अभिनंदन में फंसने से बचते थे. उनका विनोदी स्वभाव तारीफों को चुपचाप काट देता था.
एकात्मता रथयात्रा
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बताया कि पिंगले का योगदान केवल वैचारिक क्षेत्र तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने वैज्ञानिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में भी सक्रिय भागीदारी निभाई. सरस्वती नदी पुनरुद्धार अभियान में उन्होंने वैज्ञानिकों के साथ यात्रा की. उन्होंने अनेक लोगों को संघ और रचनात्मक कार्यों से जोड़ा. कई तो स्वयंसेवक भी नहीं थे, लेकिन उनके संपर्क से जुड़े. ‘एकात्मता रथयात्रा’ का उल्लेख करते हुए भागवत ने बताया कि गंगासागर से सोमनाथ तक की इस यात्रा में मोरोपंत पिंगले के संचालन को एक समाचार पत्र ने ‘सैन्य सटीकता’ (military precision) कहा था. उन्होंने यह भी कहा कि पिंगले जहां भी बोलते थे, वहां श्रोता तनावमुक्त हो जाते थे.