ईद मनाई, तो 5 लाख जुर्माना दोगे’, कौन हैं अहमदिया मुसलमान, जिनके त्यौहार मनाने पर पाकिस्तान ने लगाई पाबंदी

पूरे पाकिस्तान में ईद का त्यौहार वैसे तो खुशी से मनाया जाता है लेकिन कुछ ऐसे इलाके भी हैं, जहां पर ईद मनाने के लिए लोगों को रोका जा रहा है. ये पाबंदी एक समुदाय विशेष पर लगाई जा रही है. आप सोच रहे होंगे कि मुस्लिम धर्म मानने वाले किसी समुदाय को भला ईद क्यों नहीं मनाने दी जा रही है? चलिए आपको बताते हैं कि आखिर अहमदिया मुस्लिमों को ईद मनाने से पाकिस्तानी सरकार रोक क्यों रही है?
यूं तो पाकिस्तान एक मुस्लिम देश है, जहां ईद का त्यौहार खुशी से मनाया जाता है. बावजूद इसके यहां भी मुसलमानों का एक तबका ऐसा है, जिसे पाक सरकार ये धार्मिक त्यौहार मनाने नहीं देती. इसके लिए बाकायदा हलफनामा भी भराया जा रहा है. ये हलफनामा पाकिस्तान के अशांत प्रांत सिंध और पंजाब के अहमदिया मुस्लिमों से भराया जा रहा है.
*अगर मनाई ईद, तो 5 लाख का जुर्माना दोगे*
अहमदिया मुसलमानों को चेतावनी दी गई है कि अगर उन्होंने ईद मनाई तो 5 लाख रुपए जुर्माना देना होगा.
पंजाब और सिंध के कई इलाकों में को अहमदिया समुदाय पर घर के अंदर धार्मिक रीति-रिवाजों और कुर्बानी न करने का भी दबाव बनाया जा रहा है. इस साल 7 जून को ईद का त्यौहार मनाया जा रहा है. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कई जगहों पर पुलिस अहमदिया लोगों को हिरासत में ले रही है. इन लोगों को धमकी देकर या परेशान करके हलफनामे पर साइन कराए जा रहे हैं.
*पाकिस्तान है 20 लाख अहमदिया मुस्लिमों का घर*
पाकिस्तान में कुछ समुदाय हमेशा सेना और सरकार के निशाने पर रहे हैं, जिनमें अहमदिया समुदाय भी शामिल है. एमनेस्टी इंटरनेशनल की जून 2024 की रिपोर्ट कहती है कि पंजाब में कम से कम 36 अहमदियाओं को मनमानी से गिरफ्तार कर लिया गया ताकि वे ईद न मना सकें. पाकिस्तान में 1974 के संवैधानिक संशोधन के तहत अहमदियाओं को मुस्लिम नहीं माना जाता है, जबकि यहां इनकी करीब 20 लाख आबादी रहती है. इन्हें कुरान पढ़ने, नमाज़ अदा करने जैसे धार्मिक रीति-रिवाज निभाने से रोका जाता है, जबकि उन पर लगातार हमले और उत्पीड़न की घटनाएं होती रहती हैं
कौन हैं अहमदिया मुस्लिम?
पंजाब के लुधियाना ज़िले में मौजूद कादियान गांव में अहमदिया मुस्लिमों के समुदाय की शुरुआत हुई थी. साल 1889 में मिर्जा गुलाम अहमद ने खुद को खलीफा घोषित किया और शांति-प्रेम, न्याय और पवित्रता जैसे सबक दिए. मिर्जा गुलाम अहमद ने इसे इस्लाम का पुनरुत्थान माना और ये कट्टरपंथ और धार्मिक युद्ध के खिलाफ लोगों को एकत्रित किया. अहमदिया समुदाय की इसी लिबरल सोच की वजह से वे कट्टरपंथी लोगों की नज़रों में अखरते हैं. पाकिस्तान में 1974 में दंगे के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया मुस्लिमों को नॉन मुस्लिम बता दिया. यहां के कानून के मुताबिक अहमदिया खुद को इस्लाम से जुड़ा नहीं बता सकते और अगर उन्होंने ऐसा किया तो उन्हें 3 साल तक की सज़ा होगी. आम मुस्लिमों से अलग होने की वजह से उन पर पाकिस्तान में जमकर अत्याचार होते हैं.