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एयर इंडिया प्लेन क्रैश: ऐसी होती है मां, खुद बुरी तरह झुलसी, मगर अपनी खाल से बेटे को दे दी नई जिंदगी

12 जून की वह दोपहर हमेशा के लिए दर्ज हो गई, एक हादसे, एक चमत्कार, और एक मां के अटूट प्रेम की अमिट मिसाल के रूप में… अहमदाबाद के मेघाणीनगर स्थित बीजे मेडिकल कॉलेज की एक रिहायशी बिल्डिंग पर जब एयर इंडिया का विमान आकर गिरा, तो हर तरफ सिर्फ आग, धुआं और चीख-पुकार थी. लेकिन उसी मलबे के बीच, एक मां ने अपने आठ महीने के मासूम बेटे को अपने शरीर से ढंककर मौत से बचा लिया.

30 वर्षीय मनीषा कच्छाड़िया और उनका बेटा ध्यान्श उसी इमारत में रहते थे, जिस पर विमान गिरा. प्लेन क्रैश की वजह से वहां इतना घना धुआं था कि कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, पर मनीषा ने अपने बेटे को सीने से लगाया और किसी भी तरह बाहर भागीं. इस आग से दोनों बुरी तरह झुलस चुके थे, लेकिन जिंदा थे.

‘मैंने सोचा अब नहीं बचेंगे…’

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पांच हफ्ते तक अस्पताल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ने के बाद शुक्रवार को मां-बेटे को अस्पताल से छुट्टी मिली. मनीषा 25 तक जल चुकी थी. उनका चेहरा और हाथ बुरी तरह झुलस चुके थे. जबकि ध्यान्श 36 फीसदी तक जल गया था. उसके चेहरे, पेट, छाती और हाथ-पैर पर गहरे जख्म थे

मैंने सोचा अब नहीं बचेंगे…’

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पांच हफ्ते तक अस्पताल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ने के बाद शुक्रवार को मां-बेटे को अस्पताल से छुट्टी मिली. मनीषा 25 तक जल चुकी थी. उनका चेहरा और हाथ बुरी तरह झुलस चुके थे. जबकि ध्यान्श 36 फीसदी तक जल गया था. उसके चेहरे, पेट, छाती और हाथ-पैर पर गहरे जख्म थे.

मनीषा ने कहा, ‘एक पल ऐसा आया जब लगा कि अब हम नहीं बचेंगे. पर मेरे बेटे के लिए मुझे लड़ना था. जो दर्द हमने झेला है, उसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता.’

मां की खाल से बेटे को जिंदगी

केडी हॉस्पिटल के प्लास्टिक सर्जन डॉ. ऋत्विज पारिख के मुताबिक, ‘ध्यान्श की उम्र बहुत छोटी थी. उसके शरीर से थोड़ी सी ही त्वचा ली जा सकती थी, इसलिए हमने मनीषा की त्वचा को भी उसके शरीर पर ग्राफ्ट किया. संक्रमण का जोखिम बहुत था, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना था कि उसकी ग्रोथ पर कोई असर न पड़े

मां ने एक बार नहीं, दो बार अपने शरीर से बेटे की जान बचाई… पहले आग से बचाकर, और फिर अपनी खाल से उसके जले हुए शरीर को नई जिंदगी देकर.

शरीर पर जख्म, आंखों में तसल्ली

केडी हॉस्पिटल ने प्लेन क्रैश में घायल छह मरीजों का मुफ्त इलाज किया, जिनमें कच्छाड़िया मां-बेटा भी शामिल थे. डॉक्टरों और नर्सों की मेहनत के साथ-साथ एक मां की ममता ने यह चमत्कार संभव किया.

आज भी मनीषा के शरीर पर जख्म हैं, मगर उसकी आंखों में तसल्ली है. वह कहती हैं, ‘मेरे लिए अब जीना बस उसके चेहरे की मुस्कान और सांसों में सुकून है.’

ध्यान्श के लिए उसकी मां की गोद सिर्फ एक आश्रय नहीं थी, बल्कि एक ऐसी ढाल थी जो आग, पीड़ा और मौत के सामने खड़ी हो गई. इस हादसे ने एक बार फिर साबित कर दिया- मां सिर्फ जननी नहीं होती, वह जीवन की सबसे मजबूत दीवार होती है

saamyikhans

former crime reporter DAINIK JAGRAN 2001 and Special Correspondent SWATANTRA BHARAT Gorakhpur. Chief Editor SAAMYIK HANS Hindi News Paper/news portal/

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