बिहार

बिहार की राजनीति के ‘रहस्यमयी किरदार’ बन गए हैं चिराग पासवान, उनका ‘चक्रव्यूह’ सबको उलझा रहा!

बिहार की सियासत में चिराग पासवान एक ऐसे किरदार बनकर उभरे हैं जिनके इरादे और रणनीति को समझना किसी पहेली से कम नहीं है. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान एक तरफ एनडीए के वफादार सिपाही बने हुए हैं तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार की सरकार पर तीखे हमले बोल रहे हैं. गया में एक महिला अभ्यर्थी के साथ दुष्कर्म की घटना पर चिराग ने बिहार पुलिस और प्रशासन को ‘निकम्मा’ करार दे दिया तो बिहार की राजनीति में फिर हलचल मच गई. वहीं, जेडीयू ने चेतावनी जारी कर दी और कहा कि- अति सर्वत्र वर्जयेत्! इसका मतलब यह कि किसी भी तरह की अति (अधिकता) से हमेशा परहेज करना चाहिये. दरअसल, चिराग पासवान ने सीधे नीतीश कुमार पर हमला बोला और कहा कि, यह कहते हुए कि दुख होता है कि मैं ऐसी सरकार का समर्थन कर रहा हूं, जहां अपराध बेलगाम है. जाहिर है उनका यह बयान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ दावों पर सवाल उठाते हैं जो बिहार में एनडीए सरकार की उपलब्धि कही जाती है.

दरअसल, चिराग पासवान की रणनीति में यह दोहरा रुख साफ दिखता है. एक ओर वे नीतीश कुमार के नेतृत्व में 2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए की जीत का दावा करते हैं. उन्होंने हाल में ही कई बार कहा है कि, नीतीश कुमार के नेतृत्व पर कोई सवाल नहीं. दूसरी ओर, पटना में गोपाल खेमका हत्याकांड और नालंदा में दो युवकों की हत्या जैसे मामलों पर नीतीश सरकार को कठघरे में खड़ा करते हैं. शनिवार (26 जुलाई) को उन्होंने गया दुष्कर्म की घटना को लेकर फिर नीतीश सरकार को घेरा. खास बात यह कि उनकी यह आलोचना न केवल जदयू को असहज करती है, बल्कि एनडीए के भीतर टेंशन को भी उजागर करती है. ऐसे में जदयू भी चिराग पासवान पर हमलावर होने का मौका नहीं चूक रहा है.

जदयू को चिराग से किस बात का डर?

चिराग पासवान के ताजा बयान पर जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने साफ तौर पर कहा- अति सर्वत्र वर्जयेत्! उन्होंने कहा कि चिराग पासवान का शरीर कहीं है और आत्मा कहीं है. इस पीड़ा का खात्मा नहीं हो सकता है. पीएम मोदी और अमित शाह का भरोसा सीएम नीतीश कुमार पर है, तो चिराग पासवान का मन विचलित हो रहा हो तो वे जानें. जनता का भरोसा सीएम नीतीश कुमार पर है. दरअसल, जदयू के सूत्रों का मानना है कि चिराग 2020 की तरह वोटकटवा की भूमिका निभा सकते हैं, जब उनकी पार्टी ने जदयू के खिलाफ 134 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और जदयू को 28 सीटों पर नुकसान पहुंचाया. यही कारण रहा कि जदयू पहले नंबर की पार्टी से बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई.

चिराग की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा!

चिराग पासवान की राजनीतिक रणनीति का खास हिस्सा यह भी कि वह नीतीश सरकार के साथ ही समान रूप से का तेजस्वी यादव और राजद पर हमला बोलना उनकी रणनीति का हिस्सा है. विशेष गहन संशोधन (SIR) को विवाद पर वोट बहिष्कार की बात कहने को लेकर चिराग ने तेजस्वी यादव और कांग्रेस को निशाने पर लिया और सीधा कहा, हिम्मत है तो चुनाव का बहिष्कार करके दिखाएं. इनमें अकेले लड़ने की हिम्मत नहीं. मैंने 2020 में अकेले चुनाव लड़ा था. जाहिर है उनका यह बयान तेजस्वी यादव की लोकप्रियता को टारगेट कर कमजोर करने की कोशिश है जो हाल के सर्वे में मुख्यमंत्री पद के लिए पहली पसंद बने हैं. चिराग पासवान का यह तंज राजद के MY (मुस्लिम-यादव) वोट बैंक टारगेट कर एनडीए के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास हो सकता है.

नीतीश सरकार को क्यों निशाना बना रहे चिराग?

वहीं, दूसरी ओर प्रशांत किशोर की तारीफ में चिराग का खुलकर बोलना भी सियासी हलकों में चर्चा का विषय है. उन्होंने प्रशांत की ‘जातिविहीन समाज’ की विचारधारा को अपनी सोच से मिलता-जुलता बताया. यह बयान न केवल उनकी युवा और प्रगतिशील छवि को मजबूत करता है, बल्कि प्रशांत की जन सुराज पार्टी के साथ भविष्य में संभावित गठजोड़ की अटकलों को भी हवा देता है. हालांकि, चिराग पासवान ने बार-बार स्पष्ट किया है कि वे एनडीए के साथ हैं और 2020 जैसी बगावत नहीं करने जा रहे हैं. ऐसे में सवाल यही है कि फिर नीतीश सरकार को कठघरे में क्यों खड़े कर रहे हैं? क्या चिराग पासवान असमंजस में हैं या इस राजनीति के पीछे कोई रणनीति है?

चिराग पासवान की रणनीति के पीछे क्या?

राजनीति के जानकारों का मानना है कि चिराग की यह रणनीति एनडीए की सुनियोजित चाल हो सकती है. दरअसल, बीजेपी बहुत हद तक नीतीश कुमार पर निर्भर है, ऐसे में चिराग पासवान को तेजस्वी यादव की युवा अपील और आक्रामक छवि की काट के रूप में इस्तेमाल कर रही हो. चिराग की दलित और पासवान वोटों (लगभग 6%) पर पकड़ और उनकी ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ की छवि उन्हें युवा मतदाताओं के बीच आकर्षक बनाती है. दूसरी ओर, कुछ का मानना है कि चिराग अपनी मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षा को पोषित कर रहे हैं. हाल के सर्वे में उनकी लोकप्रियता 10.6% रही जो नीतीश (18.4%) और तेजस्वी (36.9%) से कम है, लेकिन प्रशांत किशोर (16.4%) से ज्यादा है.

बिहार की सियासत पर क्या होगा असर?

चिराग पासवान की यह रणनीति एनडीए को मजबूत करने के साथ-साथ जदयू को दबाव में रख सकती है. उनकी आलोचना से नीतीश की ‘सुशासन’ छवि को नुकसान हो सकता है जिसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है. वहीं, तेजस्वी यादव पर हमले महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं. हालांकि, अगर चिराग की यह रणनीति बैकफायर करती है तो एनडीए की एकता खतरे में पड़ सकती है जैसा कि 2020 में हुआ था. चिराग की युवा अपील और आक्रामक शैली उन्हें भविष्य का बड़ा नेता बना सकती है, लेकिन अभी उनकी असल मंशा एक रहस्य बनी हुई है.

saamyikhans

former crime reporter DAINIK JAGRAN 2001 and Special Correspondent SWATANTRA BHARAT Gorakhpur. Chief Editor SAAMYIK HANS Hindi News Paper/news portal/

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