देशभर में हैं 30 हजार से ज्यादा स्कूल, मातृभाषा में कैसे होगी पढ़ाई? सामने आएंगी कई चुनौतियां*

देशभर के स्कूलों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) और नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (NCF 2023) को लागू करने के लिए कई प्रयोग किए जा रहे हैं. इसके तहत भारत में प्राथमिक शिक्षा की भाषा को लेकर बड़ा बदलाव सामने आ रहा है. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने हाल ही में अपने सभी संबद्ध स्कूलों को प्री प्राइमरी से क्लास 2 तक के स्टूडेंट्स को मातृभाषा या स्थानीय भाषा में पढ़ाने का सुझाव दिया है.
सीबीएसई बोर्ड ने स्पष्ट किया है कि इस बदलाव को एकदम से लागू नहीं किया जाएगा, बल्कि स्कूलों को इसके लिए समय और संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे. CBSE अधिकारियों का कहना है कि भाषा बच्चों की सीखने की क्षमता को सीधे प्रभावित करती है. बच्चे अपनी मातृभाषा या अपने क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा सहज महसूस करते हैं. इससे उनका कॉन्फिडेंस बढ़ता है और वे नए कॉन्सेप्ट को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं. इसी वजह से CBSE अब इस पर जोर दे रहा है कि छोटे बच्चों को उन्हीं की भाषा में शिक्षा दी जाए.
मातृभाषा में पढ़ाई कैसे होगी?
स्कूलों के लिए मातृभाषा में पढ़ाई करवा पाना आसान नहीं है. इसमें उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. सीबीएसई ने स्कूलों से कहा है कि उन्हें सबसे पहले अपने स्टूडेंट्स की मातृभाषा या स्थानीय भाषा की पहचान करना होगा. इसके बाद वे अपना स्टडी मटीरियल, किताबें और टीचिंग मेथड्स को उसी भाषा के अनुसार ढाल सकते हैं. बोर्ड ने स्कूलों को गर्मी की छुट्टियों के दौरान इस पर काम शुरू करने की सलाह दी थी. इससे जुलाई 2025 से इसे लागू करना आसान हो जाता.
सामने आ रही हैं कई चुनौतियां
सीबीएसई की इस नीति को लागू करने में कई प्रैक्टिकल चुनौतियां सामने आ रही हैं. महानगरों और बहुभाषी क्षेत्रों में स्थित स्कूलों में यह बदलाव करना कठिन हो रहा है. उदाहरण के लिए, हैदराबाद जैसे शहरों में कई स्कूलों में 40% से अधिक शिक्षक तेलुगु नहीं जानते है. ऐसे में उन स्कूलों को नए स्थानीय भाषा शिक्षक नियुक्त करने की जरूरत होगी. इसी तरह से दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में स्टूडेंट्स की भाषाई विविधता इतनी ज्यादा है कि एक खास मातृभाषा का चुनाव करना मुश्किल हो जाता है
किताबों का होगा अनुवाद
कई स्कूलों को किताबों का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद भी करवाना पड़ेगा. इसके लिए समय, बजट और विशेषज्ञता की जरूरत है. क्लासेस को रीस्ट्रक्चर करवाना भी एक अहम मुद्दा है. एक ही क्लास में हिंदी, बंगाली और तमिल भाषी बच्चे हों तो अलग-अलग सेक्शन बनाने पड़ सकते हैं. CBSE का मानना है कि यह बदलाव बच्चों की बेहतर शिक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम है. बोर्ड सुनिश्चित करना चाहता है कि सभी बच्चों को समान अवसर मिलें और वे अपनी शुरुआती पढ़ाई उसी भाषा में करें, जिसमें वे सोचते और समझते हैं.