हर केस में CBI जांच नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने खींची सीमा रेखा, कहा- ‘रूटीन में जांच आदेश देना सही नहीं

नई दिल्ली:
हर आपराधिक मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से जांच कराने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा संकेत दिया है। अदालत ने शुक्रवार को स्पष्ट शब्दों में कहा कि CBI जांच का आदेश सिर्फ तभी दिया जाना चाहिए जब यह ठोस रूप से साबित हो जाए कि राज्य पुलिस निष्पक्ष और सही तरीके से जांच करने में अक्षम है। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी एक विशेष मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा CBI जांच के आदेश को चुनौती दी गई थी।
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें धोखाधड़ी और जबरन वसूली के मामले की जांच CBI को सौंप दी गई थी। पीठ ने कहा कि अदालतों को बिना ठोस आधार के या केवल संदेह के आधार पर CBI जांच का निर्देश नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने टिप्पणी की, “सीबीआई जांच के आदेश कोई आम बात नहीं होनी चाहिए। यह तब ही दिया जाना चाहिए जब यह राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असर डालने वाला मामला हो, या फिर जहां पूर्ण न्याय और मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी हो।”
यह मामला अक्टूबर 2022 में हरियाणा के पंचकूला से जुड़ा है, जहां एक व्यक्ति ने एफआईआर दर्ज कराई थी कि आरोपी ने खुद को खुफिया ब्यूरो का आईजी बताकर 1.49 करोड़ रुपये हड़प लिए। पीड़ित का आरोप था कि दवा कारोबार से जुड़े होने के चलते उस पर दबाव बनाकर पैसे वसूले गए।
शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट से आग्रह किया कि मामले की जांच राज्य पुलिस से लेकर CBI को सौंप दी जाए। हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली, लेकिन इसके खिलाफ आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। शीर्ष अदालत ने 2 अप्रैल को दिए अपने निर्णय में कहा कि याचिका में लगाए गए आरोप “अस्पष्ट और आधारहीन” थे, जिनके दम पर CBI जैसी एजेंसी को जांच सौंपना उचित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह संदेश साफ हो गया है कि CBI जैसी संस्था को सिर्फ गंभीर, संवेदनशील और विशेष मामलों में ही जांच के लिए लगाया जाना चाहिए — न कि रूटीन या सामान्य संदेह के आधार पर।