ईरान-इजरायल ने दागीं मिसाइलें और ‘ढह’ गया भारत का शेयर बाजार,
ईरान-इजरायल तनाव के बीच घरेलू शेयर बाजारों में सोमवार (15 अप्रैल) को भारतीय सूचकांक सेंसेक्स-निफ्टी गिरावट के साथ बंद हुए. 12 अप्रैल को कारोबार के अंत में तीस शेयरों पर आधारित बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स (Sensex) 845.12 अंक या 1.14 फीसदी की गिरावट के साथ 73,399.78 अंकों पर बंद हुआ. इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी (Nifty) भी 246.90 अंक या 1.10 फीसदी टूटकर 22,272.50 के स्तर पर बंद हुआ.
बीते कारोबारी दिन यानी 12 अप्रैल को कारोबार के अंत में सेंसेक्स 793.25 अंक या 1.06 फीसदी की गिरावट के साथ 74,244.90 अंकों पर बंद हुआ था. वहीं निफ्टी भी 234.40 अंक या 1.03 फीसदी टूटकर 22,519.40 के स्तर पर बंद हुआ था.
निवेशकों के करीब ₹5 लाख करोड़ डूबे
बीएसई में लिस्टेड कंपनियों का कुल मार्केट कैप 15 अप्रैल को घटकर 394.73 लाख करोड़ रुपये पर आ गया, जो 12 अप्रैल को 399.67 लाख करोड़ रुपये था. इस तरह लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैप आज करीब 4.94 लाख करोड़ रुपये घटा है. ऐसे में निवेशकों की संपत्ति में करीब 4.94 लाख करोड़ रुपये की गिरावट आई है
टॉप गेनर और लूजर
सोमवार (15 अप्रैल) के कारोबार में ONGC, Hindalco Industries, Maruti Suzuki, Nestle India और Bharti Airtel निफ्टी के टॉप गेनर रहे. वहीं Shriram Finance, Wipro, Bajaj Finance, ICICI Bank और Bajaj Finserv टॉप लूजर रहे. आइए जानते हैं कि सोमवार को शेयर बाजार में आई गिरावट की क्या वजहें हैं?
शेयर बाजार में गिरावट ये हैं बड़े कारण
- ईरान-इजरायल टेंशन से बिगड़ा माहौल- ईरान की ओर से इजरायल के कई जगहों पर हमला करने से दुनिया भर में टेंशन बढ़ चुका है. कच्चे तेल के दाम और महंगाई में बढ़ोतरी होने की आशंका है. इस कारण शेयर बाजार में भारी गिरावट हुई है.
- थोक महंगाई में मामूली बढ़त- देश में सब्जियों, आलू, प्याज और कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण थोक महंगाई मार्च में मामूली रूप से बढ़कर 0.53 फीसदी हो गई, जो फरवरी में 0.20 फीसदी थी. थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित महंगाई अप्रैल से अक्टूबर तक लगातार शून्य से नीचे बनी हुई थी. नवंबर में यह 0.26 फीसदी थी. दिसंबर, 2022 में यह 5.02 फीसदी के स्तर पर थी.
- कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा- कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने भी निवेशकों को चिंता को बढ़ा दिया है. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि इससे स्थानीय करेंसी और महंगाई पर दबाव पड़ सकता है