क्या हम भगवान को पाने के लिए मंदिर जाते हैं?

इस लेख में यह विचार प्रस्तुत किया गया है कि क्या हम वास्तव में भगवान को पाने के लिए मंदिर जाते हैं। लेखक भागवत पुराण के प्रह्लाद के उदाहरण का उल्लेख करते हैं, जहाँ भगवान नृसिंह ने बार-बार वर माँगने को कहा लेकिन प्रह्लाद ने कुछ नहीं माँगा। इससे यह सिद्ध होता है कि जब तक लौकिक इच्छाओं और स्वार्थ का त्याग नहीं किया जाता, तब तक ईश्वर का साक्षात्कार संभव नहीं है। ईश्वर को पाने के लिए निःस्वार्थ भक्ति आवश्यक है। लेकिन आज अधिकांश लोग भगवान को पाने की बजाय उनसे कुछ माँगने के उद्देश्य से मंदिर जाते हैं — या तो लोभ की भावना से या भय के कारण। इस प्रवृत्ति को लेखक एक समाजिक बीमारी बताते हैं, जहाँ भगवान साध्य नहीं, बल्कि साधन बन गए हैं। इस संदर्भ में सच्चे भक्ति और ईश्वर से एकात्मकता की भावना को महत्व दिया गया है, जो केवल इच्छाओं के त्याग से ही प्राप्त हो सकती है।