राष्ट्रीय

इलेक्‍ट्रॉनिक वॉरफेयर बनेगा भविष्‍य का हथियार, भारत ने कर ली है पूरी तैयारी

पिछले एक दशक में युद्ध के तरीके बदल चुके हैं. आर्मी यानी थलसेना किसी भी देश की सीमा की सुरक्षा की रीढ़ हुआ करती थी. आर्मी की अहमियत आज भी बहुत ज्‍यादा है, पर एयरफोर्स और नेवी की भूमिका काफी बढ़ी है. बालाकोट एयर स्‍ट्राइक से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक में सभी ने वायुसेना की ताकत को देखा. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मॉडर्न वॉरफेयर का एक और पहलू सामने आया – इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर. भारत ने इस ऑपरेशन के दौरान पाकिस्‍तान के रडार को जाम कर अचूक हमले किए थे. चीफ ऑफ डिफेंस स्‍टाफ (CDS) की ओर से अब इसी इलेक्‍ट्रॉनिक वॉरफेयर को लेकर भविष्‍य में अपनाई जाने वाली स्‍ट्रैटजी का खुलासा किया गया है. भविष्‍य में यह अहम वेपन यानी हथियार होने वाला है.

समय में इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर (EW) (जिसमें इलेक्ट्रॉनिक काउंटरमेजर्स (ECM) और इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटरमेजर्स (ECCM) शामिल हैं) किसी भी बड़े सैन्य अभियान के लिए निर्णायक साबित होंगे. विशेष रूप से एम्फीबियस ऑपरेशन (जहां थल, जल और वायु सेनाएं एक साथ कार्रवाई करती हैं) में EW की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होगी. सूत्रों के अनुसार, ऐसे अभियानों में इलेक्ट्रॉनिक सपोर्ट मेजर्स (ESM), ECM और ECCM का इस्तेमाल सुव्यवस्थित तरीके से करना जरूरी है, ताकि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक (EM) स्पेक्ट्रम के भीतर विभिन्न सैन्य इकाइयों के लिए पर्याप्त बैंडविड्थ उपलब्ध हो सके. इसके साथ ही दुश्मन की ESM क्षमताओं को दबाना और अपनी ESM को दुश्मन के हस्तक्षेप से सुरक्षित रखना भी प्रमुख लक्ष्य होगा.

स्‍ट्रैटजी तय

सीडीएस जनरल अनिल चौहान की ओर से इस बाबत जारी स्‍ट्रैटजी के अनुसार, तीनों सेनाओं (आर्मी, नेवी और एयरफोर्स) के पास मौजूद EW संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत योजना और समन्वय जरूरी है. EM स्पेक्ट्रम का प्रभावी प्रबंधन न केवल बलों के भीतर, बल्कि ATF के विभिन्न घटकों के बीच सीमलेस कमांड एंड कंट्रोल सुनिश्चित करेगा. अभियान के दौरान EW गतिविधियों का समन्वय सुनिश्चित करने के लिए एम्फीबियस फोर्स मुख्यालय में एक वरिष्ठ EW विशेषज्ञ को EW कमांडर नियुक्त किया जाएगा. यह अधिकारी ऑपरेशनल फोर्स कमांडर (OFC) या ज्वॉइंट टास्क फोर्स कमांडर (JTFC) के अधीन कार्य करेगा.

ताकि सिस्‍टम रहे तैयार

रक्षा योजना दस्तावेजों में इस बात पर जोर दिया गया है कि किसी भी संयुक्त अभियान की प्रारंभिक योजना में एक व्यापक एमिशन पॉलिसी (Emission Policy) शामिल होनी चाहिए. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरफेरेंस और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कम्पैटिबिलिटी (EMC) संबंधी समस्याओं के कारण संयुक्त बलों की क्षमताएं सीमित न हों. रक्षा अधिकारियों के अनुसार, इन तकनीकी और ऑपरेशनल एंगल का परीक्षण शांतिपूर्ण समय में और पूर्वाभ्यास के दौरान किया जाना चाहिए, ताकि वास्तविक युद्ध या आपातकालीन परिस्थितियों में सभी सिस्टम पूरी तरह से तैयार रहें.

नई ताकत

सैन्य विश्लेषकों का कहना है कि आधुनिक युद्ध में सफलता केवल हथियारों की ताकत पर निर्भर नहीं करती, बल्कि सूचना, संचार और इलेक्ट्रॉनिक प्रभुत्व पर भी आधारित होती है. ऐसे में EM स्पेक्ट्रम का प्रभावी नियंत्रण दुश्मन की क्षमताओं को पंगु बना सकता है और अपनी सेना की कार्रवाई को और सटीक व तेज बना सकता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि तकनीकी रूप से उन्नत प्रतिद्वंद्वियों से मुकाबला करने के लिए भारत को EW क्षमताओं में निरंतर निवेश और इंटर-सर्विस कोऑर्डिनेशन बढ़ाने की आवश्यकता है. आने वाले वर्षों में, समुद्री सीमाओं की सुरक्षा और तटवर्ती इलाकों में संयुक्त सैन्य अभियानों में EW का महत्व और बढ़ने वाला है.

saamyikhans

former crime reporter DAINIK JAGRAN 2001 and Special Correspondent SWATANTRA BHARAT Gorakhpur. Chief Editor SAAMYIK HANS Hindi News Paper/news portal/

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